उष्ण कटिबंधीय पट्टी में सूर्य से प्राप्त ऊर्जा अंतरिक्ष में विकिरण वापस करने की तुलना में अधिक होती है। अतिरिक्त ऊर्जा वायुमंडल और महासागरों की गति से समशीतोष्ण क्षेत्रों में भेजी जाती है। इसलिए उष्ण कटिबंध के ऊर्जा बजट में कोई भी बदलाव पूरे ग्रह को प्रभावित करेगा। ऊर्जा विनिमय जल चक्र और विशेष रूप से उष्णकटिबंधीय संयोजी प्रणालियों से मजबूती से जुड़े हुए हैं: उष्णकटिबंधीय बारिश में भारी मात्रा में प्रछन्न ऊष्मा निर्मुक्त की जाती है, जबकि उच्च आर्द्रता और घने मेघ विकिरण बजट को काफी प्रभावित करते हैं। विकिरण, जल वाष्प, मेघ, वर्षा और वायुमंडलीय गति के बीच कई अंतःक्रियाएं संवहनी मेघ प्रणालियों के जीवन चक्र और उष्णकटिबंधीय चक्रवात, मानसून, बाढ़ और सूखे जैसी चरम घटनाओं की उत्पत्ति को निर्धारित करती हैं। उपर्युक्त प्राचलों की गतिशील प्रकृति के कारण, निम्न कक्षा वाली सूर्य-तुल्यकालिक कक्षाओं से अवलोकन की आवृत्ति अपर्याप्त है। केवल भू-स्थिर उपग्रह उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों की निरंतर निगरानी में सक्षम हैं, लेकिन उनके दृश्य-अवरक्त संवेदक बादल की सतह के गुणों या जल वाष्प के क्षैतिज वितरण की सीमित जानकारी देते हैं।
कम झुकाव वाले निम्न कक्षीय (~800 किमी) उपग्रह उच्च दोहराव प्रदान करते हैं। 20 डिग्री पर एक झुकाव अंतर-उष्णकटिबंधीय अभिसरण क्षेत्र (आईटीसीज़ेड) पर प्रत्येक बिंदु के 6 अवलोकन प्रदान करता है। सबसे ऊर्जावान उष्णकटिबंधीय प्रणाली, जैसे आईटीसीजेड के मेघ समूह, मानसून प्रणाली और उष्णकटिबंधीय चक्रवात, सैकड़ों किलोमीटर तक फैले हुए हैं। इसलिएइन अवलोकनों के लिए लगभग 10 किमी का जमीनी विभेदन पर्याप्त है।
उपर्युक्त अधिकांश आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए मेघा ट्रॉपिक्स की परिकल्पना की गई है जो निम्न भू कक्षा (LEO) मिशन है। संस्कृत में 'बादल'को मेघा और फ्रेंच में 'उष्ण कटिबंध' को ट्रॉपिक्स कहते हैं। मेघा-ट्रॉपिक्स मिशन एक इसरो-सीएनईएस (भारतीय-फ्रांसीसी) सहयोगी कार्यक्रम है जिसका उद्देश्य उपग्रह का उपयोग करके उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जल चक्र और ऊर्जा विनिमय का अध्ययन करना है।
मेघा-ट्रॉपिक्स एक टन वजनी उपग्रह है जिसे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) और फ्रांस के सेंटर नेशनल डी-एट्यूड्स स्पेसियल्स (सीएनईएस) के बीच संयुक्त कार्यक्रम के भाग रूप में संचालित किया जाएगा। उपग्रह का निर्माण इसरो द्वारा किया गया था, जो पहले के भारतीय उपग्रहों के लिए विकसित आईआरएस बस पर आधारित था, और इसमें चार उपकरण हैं जिनका उपयोग पृथ्वी के वायुमंडल का अध्ययन करने के लिए किया जाएगा।
प्रणाली और उपग्रह इसरो की जिम्मेदारी है। इसरो प्रमोचनयान, प्लेटफॉर्म, मद्रास उपकरण का एक भाग, जीपीएस अभिग्राही और मिशन संचालन केंद्र प्रदान करता है, जो सभी उत्पादों को स्तर 1 तक संसाधित करेगा। इसरो संपूर्ण नीतभार, उपग्रह और मद्रास उपकरण का एकीकरण और परीक्षण भी करेगा।
सीएनईएसप्रणाली गतिविधियों, एस्ट्रियमद्वारा अनुबंध के तहत विकसित मद्रास उपकरण के अति आवृत्ति भाग (एमएआरएफईक्यू) और एलएमडी, एलईआरएमएतथा सीईटीपीप्रयोगशालाओं के सहयोग से सीएनईएसद्वारा विकसित साफिर और स्काराबउपकरणों के लिए सहयोग प्रदान करता है।सीएनईएस साफिरऔर स्काराबउपकरणों के लिए डेटा प्रसंस्करण कलनविधि भी प्रदान करता है और मद्रास डेटा प्रसंस्करण कलनविधि के विकास में भाग लेता है। फ्रांस में एक डेटा और उपकरण प्रदर्शन विशेषज्ञता केंद्र बनाया जाएगा। विषयगत केंद्र आईकेयर में स्तर 2 और ऊपरी डेटा प्रसंस्करण करना फ्रांस की जिम्मेदारी होगी।
मेघा ट्रॉपिक्स भूमि खंड
भूमि खंड निम्नलिखित भागों में बांटा गया है:
भारत द्वारा प्रदत्त उपग्रह प्रचालन भूमि खंड
एस-बैंड दूरमिति और निर्देश स्टेशन
उपग्रह निगरानी और नियंत्रण केंद्र
भारतीय और फ्रांसीसी भागों सहित विज्ञान भूमि खंड:
भारत में स्थित नीतभार दूरमिति के लिए एक एस-बैंड मिशन स्टेशन
भारत में स्थित एक मिशन प्रचालन केंद्र
भारत में एक स्तर-2 प्रसंस्करण केंद्र जैसे मोस्डेक
फ्रांस में आईकेयर नामक एक स्तर-2 प्रसंस्करण केंद्र
मेघा-ट्रॉपिक्स उपग्रह को भारतीय पीएसएलवी प्रमोचनयान द्वारा 2011 में 867 किमी की कक्षा में 20 डिग्री के झुकाव के साथ प्रमोचित किया गया था।